मां आज तुम बिन ये घर इतना सूना क्यों ?
क्यों तुम्हारी जाने का एहसास इतना खलता है?
आज ना जाने क्यों रह रह के
तुम संग बिताया बचपन याद आता है
कितना लड़ती मैं तुम दोनों स
कितना खरा खोटा सुनाती थी
मां तुम फिर भी हंस के गले लगाती
और पापा समोसा खिलाते थे ।
गई तो तुम बस पल भर के के लिए हो
लेकिन लगता है जैसे अरसा हो गया
देर ना करो बस अब लौट आऔ
कि कहीं आंखों से आंसू ना बहने लगे मां
मां आज तुम बिन ये घर इतना सूना क्यों?
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